- Mohd Zubair Qadri
आयशा के पिता ने कहा वह मेरी बेटी का हत्यारा कोई कमरा भरकर भी पैसे दे तो भी उसे कभी माफ नहीं करूंगा

खबर देश। बीते शनिवार को अहमदाबाद की साबरमती नदी में कूदकर आयशा नाम की विवाहिता ने सुसाइड कर लिया था। सुसाइड से पहले आयशा ने हंसते हुए एक इमोशनल वीडियो भी बनाया था, जो अब वायरल हो रहा है और सोशल मीडिया में आयशा को न्याय दिलाने की मुहिम छिड़ गई है। वहीं, इस बारे में आयशा के पिता लियाकत अली का कहना है कि भले ही बेटी ने मुझसे पति को माफ कर देने की बात कही थी। लेकिन, उसने मेरी बेटी को दहेज के लिए इतना प्रताड़ित किया कि कोई मुझे कमरा भरकर भी पैसे दे तो भी मैं उसे माफ नहीं करूंगा।
तीन दिन तक खाना तक नहीं दिया था बेटी को : लियाकत अली
लियाकत अली ने बताया कि मेरी बेटी आयशा हंसमुख लड़की थी। लेकिन निकाह के बाद से ही दहेज को लेकर उसकी जिंदगी दोजख बन चुकी थी। एक बार तो ससुरालावालों ने उसे 3 दिनों तक खाना नहीं दिया था। वह मुझे फोन कर अपनी परेशानी न बता दे। इसके चलते पति आरिफ ने उसका मोबाइल फोन छीन लिया था। किसी तरह आयशा ने अपने एक पड़ोसी के मोबाइल से कॉल कर रोते हुए मुझसे कहा था 'पापा ये लोग मुझे अब खाना तक नहीं दे रहे हैं'। मैं तुरंत ससुराल जाकर बेटी को अपने साथ ले आया था और आरिफ खान, सास-ससुर और उसकी ननद के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था। आयशा ने अपने वीडियो में मुझसे इसी केस को वापस लेने की मांग की थी। लेकिन, मैं अपनी बेटी के हत्यारों को कभी माफ नहीं करने वाला।
फास्ट ट्रैक केस चलाकर आरोपी को सजा दी जानी चाहिए
इस बारे में गुजरात बार काउंसिल के मेंबर गुलाब खान पठान का कहना है कि आयशा का केस अत्यंत दुखद है। इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। कानून के अनुसार, यह मामला आईपीसी की धारा 306 के अंतर्गत आता है। इसलिए मेरा मानना है कि आरोपी को सजा तो निश्चित ही होगी। संयोगवश कोई गवाह अपने बयान से पलट भी जाए तो आयशा के आखिरी वीडियो को उसके डाइंग डिक्लेरेशन के रूप में कंसीडर कर आरोपी को सजा दी जा सकती है। इस केस में फास्ट ट्रैक केस चलाकर आरोपी को सजा दी जानी चाहिए।
दहेज के मामले में एक अलग हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए
वहीं, इस बारे में समाज शास्त्री गौरांग जानी का कहना है कि दहेज प्रतिबंधक नियम 1961 से ही अमल में है, लेकिन समाज में जागृति के अभाव में आज भी बेटियां दहेज के कुचक्र में फंसकर अपनी जान गंवा रही हैं। मेरा मानना है कि दहेज के मामले में एक अलग से हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए। जहां, पीड़िता शुरुआत में ही अपने लिए न्याय की गुहार लगा सके और उसकी जान बचाई जा सके।
इतने हद तक टॉर्चर किया कि जान दे दी
हाईकोर्ट के एडवोकेट यशमा माथुर का कहना है कि कोई भी महिला अपने वैवाहिक जीवन को खत्म करने का सपने में भी नहीं सोचती। वहीं, इस केस में भी देख लीजिए कि लंबे समय तक आयशा ने बर्दाश्त किया।उसने दहेज को लेकर मानसिक और शारीरिक रूप से कितनी यातनाएं झेली हैं, इसका अंदाजा उसकी बातें सुनकर ही लगाया जा सकता है। आखिरकार उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ गया।