- Nationbuzz News Editor
इमाम ए आली मक़ाम ने हक़ की सर बुलंदी के लिए अपनी जान का नजराना पेश किया

आर्टिकल नेशन बज़। करबला की सरजमीं पर दुनियां की बेमिसाल कुर्बानी देने वाले इमाम ए आली मक़ाम इमाम हुसैन और अहैले बैत की शहादत को याद करते हुए मुसलमानों ने मोहर्रम का पर्व बड़े अकीदत से मनाया हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने अपनी कुर्बानी देकर दीन-ए-इस्लाम के चमन को गुलजार कर दिया।
नवासाएं रसूल हजरत इमाम ए आली मक़ाम इमाम हुसैन, उनके खानदान तथा साथियों की दीन-ए-हक में दी गई बेमिसाल कुर्बानी नवासे-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन की शहादत इंसानियत और इंसाफ के पैरोकार थे। हक और सदाकत की राह में अपनी जान का नजराना पेश करने वालों का दुनिया और आखिरात में सिर बुलंद हो जाता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत को हमेशा याद किया जाएगा। करबला के मैदान में हुई हक और बातिल की लड़ाई से इबरत लेते हुए अपने ईमान को मजबूत करें और सिराते मुस्तकीम पर चले। हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए गैरइस्लामी अकीदों और खुराफत से बचना चाहिए।
इमाम ए आली मक़ाम इमाम हुसैन आज भी जिंदा है
मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख, जिसे यौमे आशूरा कहा जाता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दिन है। हक और इंसानियत का परचम उठाकर हजरत इमाम हुसैन ने दुनियां को बता दिया कि चाहे अपनी जान देना पड़े, लेकिन वे दीन पर आंच आने नहीं देंगे। इमाम ए आली मक़ाम इमाम हुसैन करबला में जंग जीतने नहीं बलि्क अपने आप को अल्लाह की राह में कुर्बानी करने आए थे। इमाम हुसैन आज भी जिंदा हैं और यजीदियत जीतकर भी हार गई।
इमाम ए आली मक़ाम इमाम ए हुसैनी किरदार अपनाएं
दुनिया-ए-इस्लाम की तारीख में करबला की जंग बेमिसाल है। हजरत इमाम हुसैन ने दुश्मनाने यजीद के सामने समर्पण करने के बजाए खुदा के सामने अपने सर की कुर्बानी दे दी। अपने लगते जिगर अली असगर, अली अकबर, हजरत कासिम से लेकर अपने पूरे खानदान की कुर्बानी देकर उन्होंने अपने नाना के दीन की हिफाजत की। उन्होंने आगे कहा कि हुसैनी किरदार अपनाकर ही हम अपनी जिंदगी को पुर नूर कर सकते हैं।