
बदायूं। जिलाधिकारी कुमार प्रशान्त ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार त्रिपाठी के साथ उझानी स्थित कोविड-19 लेबल-1 हाॅस्पीटल पहुँचकर मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅ0 यशपाल सिंह व अन्य चिकित्सकों से व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी ली। उन्होंने कहा कि मरीजों को किसी प्रकार की परेशानी न होने पाए। सभी व्यवस्थाएं चाक चैबंद रहें। मरीजों को जलपान, भोजन व दवा समय से मिलती रहे। चिकित्सक नियमित रूप से मरीजों की देखभाल करते रहें। शौचालय सहित समस्त स्थानों पर साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाए। प्रतिदिन सुबह-शाम पूर्ण परिसर को सैनिटाइज़ किया जाए। खाना बनाने वाले कर्मी एवं भोजन तैयार करने वाले सभी व्यक्ति खाना बनाने से पहले साबुन आदि से अच्छी तरह से हाथ साफ रखें और सेनेटाइजर का इस्तेमाल करें। साथ ही प्रत्येक कर्मी मास्क व हैंड ग्लब्स अनिवार्य रूप से पहनें और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें।
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पुलिस सहायता केन्द्र से आमजन को मिलेगी मदद
पुलिस सहायता केन्द्र की आवश्यकता वाईपास पर काफी दिनों से महसूस की जा रही थी, जो अब पूरी हो चुकी है, जिससे अब आमजन को पुलिस की मदद मिल सकेगी, साथ ही हाइवे पर भी निगरानी और जरूरत पड़ने पर नाकेबंदी भी आसान हो जाएगी।
बुधवार को जिलाधिकारी कुमार प्रशान्त एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार त्रिपाठी ने वाईपास चैराहा कोतवाली पर पुलिस सहायता केन्द्रों का फीता काटकर, नारियल तोड़कर लोकार्पण किया हैै। उन्होंने कहा कि पुलिस सहायता केंद्र से आमजन को काफी मदद मिलेगी। हम आगे भी कार्यों को करने में पीछे नहीं हटेंगे। इससे आसपास के क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं की सूचना पुलिस को मिलेगी। सहायता केन्द्र में आम लोगों की जरूरत के अनुसार सभी कार्य होंगे। शिकायतों पर मुकदमा दर्ज होगा। जरूरत पड़ने पर मेडिकल जांच भी कराई जाएगी। सड़क दुर्घटना की स्थिति में लोगों को मदद की जाएगी।
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घंटाघर की घड़ी की सुइयां जल्द करेगी टिक-टिक
उझानी। समय न कभी रुकता है और न थकता है। हर गुजरा पल एक इतिहास छोड़ जाता है। बुधवार को जिलाधिकारी कुमार प्रशान्त एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार त्रिपाठी ने उझानी के घंटाघर को भी देखकर इसे ठीक कराने व घंटाघर की मरम्मत कराने के निर्देश दिए हैं। कभी समय के पहरेदार रहा घंटाघर भी आज खामोश हो गया है और इतिहास बनने की ओर अग्रसर हैं। ये घंटाघर कभी शहरी जिंदगी में अहम स्थान रखते थे। हर घंटे के बाद इनकी आवाज लोगों को समय का भान कराते थे। घंटाघर से घंटे की आवाज लोगों को सुलाती और जगाती थी तो कामकाज के दौरान समय भी बताती थी। लेकिन, अब ये अप्रसांगिक हो गए हैं।
शहरों में लोगों को समय बताने के लिए ऊंचे बुर्जों पर विशाल घडियां लगाई गई थी। इन घंटाघरों पर लगी घड़ी दूर से ही लोगों को समय बता देती थी। ये इतना सटीक होती थीं कि शहर में समय का पैमाना होती थीं और लोग इससे अपनी कलाई घड़ी का समय मिलाते थे। ये घंटाघर सबसे अहम लैंडमार्क भी होते थे। मगर घंटाघर खुद में इतिहास समेटे हुए हैं। घंटाघर की घड़ी आज खामोश है, मानों चुपचाप खड़े होकर बदलते वक्त को देख रही हैं। ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर की घड़ी को बंद हुए लम्बा समय हो चुका है। डीएम, एसएसपी के जायजे के बाद स्थानीय लोगों को अब उम्मीद है कि शायद जल्द ही घड़ी की सुईयां फिर से टिक टिक करने लगेंगी।